Sunday, 9 April 2017


वैधानिक सूचना- इस आर्टिकल से अगर किसी की धार्मिक भावनाएं आहत होती हों तो नीचे कमेंट में हम पर अपनी भड़ास निकाल सकता है. आपकी भावनाएं आहत होने का हमें खेद है. ये पोस्ट सिर्फ इसलिये लिखा गया है क्योंकि हमें अभी अभी संविधान में धर्मनिरपेक्षता के साथ ही 19(1) में दिए गए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का पता चला है. तो इसलिये ये सिर्फ एक टैस्ट-पोस्ट है.

अभी शादी तो नहीं हुई है मेरी...पर सुना है शादी 7 जन्मों तक चलने वाला ट्रेंड होता है...पर हां...ये सिर्फ हिंदुओं पर एप्लाई होता है...दूसरे मजहबों में इसकी टाइमलाइन आगे पीछे हो सकती है...अब बहुत सारे लोगों को ''दूसरे मजहबों'' के नाम पर सिर्फ इस्लाम ही याद आएगा...हालांकि यहां इस्लाम के बारे में हम कुछ नहीं कहेंगे...क्योंकि न हमने इस्लाम पढ़ा है...न हमें मुस्लिम धर्म की कोई जानकारी है...औऱ क्योंकि आज के वक्त में धर्म के नाम पर ''हर किसी'' की भावनाएं ''हर कभी'' आहत हो जाती है इसलिए इस पर हम कोई टिप्पणी करेंगे भी नहीं...पर हां...कभी कभी कुछ खबरें  देख लेते हैं मीडिया में इसके बारे में...कुछ तलाक...तलाक...तलाक...टाइप की खबर...किसी बेगम ने खाना अच्छा नहीं बनाया तो हाईटेक शौहर वट्सएप पर लिख देते हैं...डार्लिंग, ये लो सरप्राइज, तलाक..तलाक...तलाक....और जन्मों तक चलने वाला कॉन्ट्रेक्ट वहीं खत्म...कुछ इस पर इस्लाम की खूबियां बताते हैं तो कुछ इसकी नाकामियां...लेकिन हम कुछ नहीं बताएंगे...क्योंकि हमने इस्लाम पढ़ा नहीं है...और धार्मिक भावनाएं....उन्हें तो हम बिल्कुल आहत नहीं करना चाहेंगे...वैसे हाल ही में यूपी की एक खबर भी कुछ ऐसी ही थी...पत्नी ने बेटी को जन्म दिया तो पति ने दृढ़ वाक्य दोहरा कर शादी के रिश्ते को बीच में ही डिस्क्वालिफाइ कर दिया...और ये दृढ़ वाक्य था...तलाक..तलाक...तलाक...उसने सही किया या नहीं...पता नहीं...क्योंकि फिर से...हमने इस्लाम नहीं पढ़ा है...और भावनाओं का खयाल रखना तो हमें बखूबी आता है...खासकर धार्मिक भावनाएं...इसलिये इस पर भी हम बात नहीं करेंगे...लेकिन हाल ही में भारत में इस टॉपिक पर इतनी मगजमारी होती है...कि सास बहू टाइप के सारे सीरियल इसके सामने फेल है...और मीडिया के कुछ चैनल तो इस पर ऐसा दंगल चलाते हैं...कि खुद आमिर खान भी अगली दंगल से पहले इन्हें फॉलो करने की सोच सकते हैं...हालांकि न्यूज चैनलों पर इन दंगलों का नतीजा कुछ निकलता नहीं है...इसकी वजह ये है कि एंकरों को नतीजे से ज्यादा फिकर टाइमिंग की रहती है...एक घंटा गुजारना नतीजे से ज्यादा जरूरी होता है...टीवी डिबेट (जो असल में फालतू की मगजमारी का सिंप्लीफाइड नाम है) के इन धार्मिक दंगलों में अक्सर दो ही टीमें होती है...लेकिन वो दो टीमें कौन सी होती हैं, इस बारे में हम कुछ नहीं कहेंगे...क्योंकि हमें ''ऊपरवाले पर चर्चा'' से ज्यादा नीचे बची हमारी ''जिंदगी'' की फिकर ज्यादा है...इसलिये आइडिया आप खुद लगा लीजिये...और हां...जब भगवान और अल्लाह के बीच का फर्क समझ आ जाए...तो एक बार सेटमैक्स जरूर लगा लेना...आजकल वहां आईपीएल चल रहे हैं...और सूर्यवंशम...छुट्टी पर है...

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