Monday, 13 August 2012

इस बात में कोइ शक नहीं कि छात्र राजनीति विद्यालय परिसर में हिंसात्मक गतिविधियों को बढ़ावा देती है, लेकिन इस तर्क का इस्तेमाल करके छात्र संगठन चुनाव पर ही रोक लगा देना आखिर कितना सही है ? इस सवाल ने इन दिनों हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय का माहौल गरमा रखा है। हिमाचल विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा परिसर मे शांति बनाए रखने का प्रयास अब उल्टा पड़ता दिखाई पड़ रहा है। लेकिन कुलपति के इस प्रयास ने, हमेशा एक दूसरे पर उंगली उठाने वाले छात्र संगठनों को एक तो कर ही दिया है। बड़ा सवाल ये भी है कि क्या हिंसा पर लगाम लगाने का कुलपति महोद्य के पास अब बस यही एक रास्ता बचा है ? चुनाव में अलग अलग विचारधारा वाले संगठन आमने सामने होते हैं और जहाँ दो विचारधाराएँ आमने सामने होती हैं वहां टकराव तो निश्चित है, लेकिन इस टकराव को रोकने के लिए विचारधारा पर ही रोक लगा देना आखिर कितना सही है ? कुलपति के इस फैसले से छात्र संगठनों में काफी आक्रोश है। समस्या ये है कि यदि चुनाव से इतनी ही हिंसा होती है और हिंसा रोकने के लिय़े चुनाव को रोकना ही एकमात्र रास्ता है तो फिर लोकतंत्र का मतलब क्या है ? खैर, विश्वविद्यालय कुलपति और छात्र संगठनों के बीच का ये तनाव छात्र संघ चुनाव को किस दिशा में ले जाता है ये तो वक्त ही बतायेगा। फिलहाल हिमाचल विश्वविद्यालय और महाविद्यालयों का माहौल देखकर तो यही लगता है कि विश्वविद्यालय कुलपति महोद्य को इस विषय पर सटीक निर्णय अब ले लेना चाहिये क्योंकि निर्णय लेने का यही सही वक्त है......

2 comments:

  1. banning the elections is not the ryt way to stop violence..this will boost up the violent activities in the campus.......

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  2. i think democracy should be respected.

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