सुबह सुबह आँखें मलते अखबार के पहले
पन्ने पर जरा नजर दौड़ाई तो पाया की आजादी की बधाई देने वालों की होड़ लगी है. ये
देख मेरे चेहरे पर जरा मुस्कान सी आ गई और दिमाग में लाल किले की तस्वीर उभर आई.
सोचा, भारत आज 65 का हो गया, फिर लाल किले पर तिरंगा लहराया जाएगा, एक ओर से सलामी
दी जाएगी और एक ओर से सलामी ली जाएगी, पूरा देश जश्न में डूब जाएगा. इस सब के बीच
देश के बीते कल का भी खयाल आया. 65 सालों में क्या खोया, क्या पाया, एक युद्ध सा
शुरु हो गया जहन में.
कमियाँ
तो बहुत नजर आई, फिर सोचा, अपने कमरे में आराम से बैठकर चाय की चुस्कियों के साथ
अखबार पढ़ रहा हू, देश विदेश का हाल जान रहा हूँ, इससे अच्छा और क्या हो सकता है.
तभी आजादी की बधाई देने के लिए मोबाइल भी बज उठा. देखा तो बधाईयों से भरे SMS की बौछार सी आ गई.
सोचा, देश के बारे में सोचने के लिए तो जिंदगी पड़ी है, फिलहाल तो सब को एक और
मौका मिल गया, खुश होने का, इस दौड़ती-भागती परेशान जिंदगी में......
आखिर आजादी से बढ़कर खुशी और क्या हो
सकती है......
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