भारत में लोकसभा चुनाव के लिये अब कुछ ही
समय बाकि है और ऐसे में सबकी नजर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर आकर अटक गई है। मीडिया
बार बार 2014
के लोकसभा चुनाव को मोदी बनाम राहुल का चुनाव कह रहा है। लेकिन इस तुलना को न तो
मोदी ने स्वीकार किया है और न ही राहुल गांधी ने। नरेंद्र मोदी की जहां तक बात है तो चाहे एनडीए
हो या फिर आरएसएस
या
फिर देश की युवा शक्ति सभी ने नरेंद्र मोदी को पीएम की दावेदारी के लिए पास
कर दिया है।
ये बात इसलिये भी उभर कर आती है क्योंकि
हाल ही में दिल्ली के एक कॉलेज में छात्रों द्वारा मोदी को सुनने की इच्छा जताई गई
और मोदी ने भी छात्रों की इच्छा को पूरा करने के लिए कॉलेज जाकर उनसे रूबरू होने
में कोई आनाकानी नहीं की। दरअसल मोदी भी अब यह समझ रहे है कि हिंदुत्व का पैमाना
उन्हें हिन्दुओं के करीब तो ला सकता है मगर प्रधानमंत्री की कुर्सी के करीब नहीं ला सकता। शायद इसीलिये अब मोदी
हिंदूत्वता की नहीं बल्कि राष्ट्रीयता की बात करते है। लेकिन यह अपने आप में एक
सकारात्मक पहलू है। भारत देश के नाम के आगे हमेशा एक वाक्य जोड़ा जाता है अनेकता
में एकता। इस अनेकता में मुसलमानों की अहम भूमिका है और इस भूमिका को दरकिनार करके
प्रधानमंत्री के पद तक पहुंच पाना बहुत मुश्किल है।
यह भी एक तथ्य है कि मोदी ने स्वयं कभी भी
प्रधानमंत्री के पद के लिये दावेदारी नहीं जताई है। पर फिर भी
भारतीय जनता पार्टी में जब जब प्रधानमंत्री पद की बात आती है तब तब हर शक्स के
दिमाग में नरेंद्र मोदी की तस्वीर उभरने लगती है। अब 2014
के चुनावी युद्ध में मोदी सेनापति बनें या न बनें लेकिन लोंगों की नजरों में उनकी जो छवि
बनी है उसने
उन्हें एक ब्रैंड तो बना ही दिया है
द मोदी ब्रैंड......
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