लड़कियो की इज्ज़त करने के मामले मे हम कहाँ खड़े है, ये जानने के लिए बस टीवी ऑन करने की जरूरत है। देश मे लड़कियो की स्थिति की पूरी तस्वीर साफ हो जाएगी। अलग अलग जगहो और राज्यों मे लड़कियो का सम्मान किस तरह से हो रहा है, ये दखने के लिए भी हिम्मत का होना जरूरी है।
अभी हाल ही मे दिल्ली मे घटी घटना उस डर की एक बड़ी वजह है जो मुझे अपनी बहन को स्कूल भेजते हुये लगता है। दिल्ली की सड़कों पर शर्मसार होती इंसानियत....
लेकिन ऐसी घटना कोई पहली बार नहीं हुयी है। इससे पहले आसाम के गुवाहाटी की घटना ने भी हमे नारेबाजी का और नारी सुरक्षा को लेकर बहस करने का मौका दिया था। लेकिन मुझे दुख सिर्फ इस बात का है कि हमारी बहसबाजी और पीड़ितों को इंसाफ दिलाने के लिए की जाने वाली नारेबाजी, कुछ और नहीं बल्कि हमारा गुस्सा निकालने का एक तरीका भर है।
शायद मै भी ये सब अपना गुस्सा
निकालने के लिए ही लिख रहा हूँ। जब गुस्सा निकल जाता है तो हम शांत हो जाते है। पर
ज़िंदगी जीने की सज़ा तो उन मासूमो को मिलती है जो इस तरह की अमानवीय घटनाओ का शिकार
बनती है। ज़िंदा रहना उनके लिए एक सज़ा ही है क्योंकि जी कर वो सिर्फ अपनी किस्मत पे
आँसू बहाने और उन पुरानी घिनौनी यादों को बार बार याद करने के सिवा और कुछ नहीं कर
सकती।
मगर मुझ जैसे आम लोग विरोध,
बहस और इंसाफ के लिए नारेबाजी करने के अलावा
और कर भी क्या सकते है। हम सिर्फ मांग कर सकते है ऐसे इंसान रूपी जानवरों को सख्त सज़ा देने की। और
शिंदे साहब कहते भी है कि ऐसे अपराधियों को कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाएगी। मगर वो कड़ी
से कड़ी सज़ा है क्या??? और इस सज़ा को
मिलने मे इतना वख्त क्यो लग जाता है?
हमारे देश मे लोकतन्त्र है, एक कानूनी ढांचा है, जिसका पालन हमेशा किया जाता
है। ये सही भी है, ऐसा होना चाहिए, एक
लोकतन्त्र मे कानूनी व्यसथा की बहुत अहमियत है। मगर एक अपराधी, जिसका अपराध जग-ज़ाहिर है, जिसके खिलाफ पर्याप्त
सबूत है, और जो पोलिस की गिरफ्त मे भी है, ऐसे अपराधी को सज़ा देने मे भी... सालों क्यों लग जाते है....
दिल्ली की घटना से पूरा देश
गुस्से मे है, और इस गुस्से
की हदें जानने के लिए “social networking sites” पर एक नज़र
दौड़ाना काफी है। फेसबुक पर लाखो लोग दिल्ली की घटना के आरोपियों को सज़ा देने की
मांग कर रहे है। कोई उन्हे सरेआम फांसी देने की मांग कर रहा है, कोई उन्हे बीच चौराहे पर गोली मार देने की बात कह रहा है। लेकिन इतने घिनौने
अपराध की सज़ा, इतनी आसान मौत????
अभी दिल्ली की आग बुझी भी नहीं
थी कि देश कि आर्थिक राजधानी मुंबई की घटना सामने आ गयी जहां एक शादीशुदा औरत से
सरेआम छेड़छाड़ की घटना को अंजाम दिया गया। इसके थोड़ी ही देर बाद टीवी पर एक और खबर
आई। यूपी के मुज्जफ़्र्नगर मे एक दलित लड़की से बलात्कार की खबर। इतना ही नहीं, यहाँ तो पंचायत ने लड़की के परिवार वालों को पैसों के बदले मामला रफा दफा
करने तक का फरमान भी सुना डाला।
देश मे लड़कियों का स्थान बहुत
ऊंचा है और कितना ऊंचा है ये इन खबरों से साफ है।
टीवी पर अलग अलग चेनलों अपर इन
घटनाओं और इनके कारणो पर बहस हो रही है। और हर जगह बस एक ही ऐसा सवाल उभर रहा है
जिसका कोई सटीक जवाब नहीं मिल पा रहा है।
और वो सवाल ये कि ऐसे अपराधियों
को आखिर किसी का डर क्यो नहीं है?
शायद इसलिए क्योंकि ऐसे अपराधो
की सज़ा कानून मे इतनी मामूली है कि उसके बारे मे किसी को पता तक नहीं। सिर्फ कुछ
रुपयो का जुर्माना और साल-छह महीने की कैद इस तरह के गुनाहो को नहीं रोक सकती।
इसका सिर्फ एक ही समाधान है कि
कानूनों मे संशोधन हो और सज़ा का दायरा बढ़ाया जाये। और इतना बढ़ाया जाये की सज़ा पाने
वाले को अपनी ज़िंदगी से नफरत हो जाये।
शायद इससे समाज लड़कियों की थोड़ी
इज्ज़त करना सीख पाये....
DAMINI (name as the news channels), get well soon.....
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