नोटों की हरियाली होती ही कुछ ऐसी है....आंखों पर जब इसकी चमक भारी पड़ जाए तो पूरा युग चौंधिया जाता है और सियासत हर बार की तरह सही वक्त का इंतजार करती है...सही वक्त आता है...लेकिन वो सही सिर्फ सियासत के लिए होता है...बाकि आवाम के लिए तो तब तक एक युग का अंत हो जाता है...अब नारे लगाओ, मोमबत्तियां जलाओ या फिर विधान महफिलों में सियासत का नाच दिखाओ...लेकन पिता का दर्द कम नहीं होगा...मां की उम्मीद फिर नहीं लौटेगी...हां...
Wednesday, 24 August 2016
- 08:03
- DHARAM PRAKASH
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नोटों की हरियाली होती ही कुछ ऐसी है....आंखों पर जब इसकी चमक भारी पड़ जाए तो पूरा युग चौंधिया जाता है और सियासत हर बार की तरह सही वक्त का इंतजार करती है...सही वक्त आता है...लेकिन वो सही सिर्फ सियासत के लिए होता है...बाकि आवाम के लिए तो तब तक एक युग का अंत हो जाता है...अब नारे लगाओ, मोमबत्तियां जलाओ या फिर विधान महफिलों में सियासत का नाच दिखाओ...लेकन पिता का दर्द कम नहीं होगा...मां की उम्मीद फिर नहीं लौटेगी...हां...
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