Thursday, 18 April 2013



अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ है कहने, लिखने और विचार रखने की आजादी । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार संविधान की धारा 19 मे परिभाषित किया गया है। इसके अनुसार भारत के हर नागरिक को किसी भी विषय पर निसंकोच अपनी राय रखने या अपने विचार प्रकट करने का पूरा अधिकार है। लेकिन अभिव्यक्त करना और किसी की भावनाऐं आहत करना, इन दोंनों ही स्थितियों में अंतर बनाये रखना आज एक बडी समस्या बन गई है। 
इन दोंनों ही स्थितियों में एक बहुत ही बारीक रेखा है जिसके कारण आये दिन अभिव्यक्ति की आजादी और भावनाओं को ठेस पहुंचाने संबंधी स्थितियों मे बहस होती रहती है। समस्या यह है कि अभिव्यक्त करने की असीमित स्वतंत्रता वास्तव में सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर ही नहीं बल्कि राष्टीय स्तर पर भी एक मुश्किल बनती जा रही है।

ताजा उदाहरण के रुप में पिछले दिनों असीम त्रिवेदी के कार्टून पर छिडी बहस को लिया जा सकता है। असीम के उस विवादित कार्टून को किसी ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहा तो किसी ने इसे हर नागरिक का अधिकार। लेकिन इससे लोंगों की धार्मिक और राष्टीय भावनाओं को ठेस पहुंची थी। इसके लिये असीम को कानूनी दावपेंच से भी रुबरु होना पडा था। इस पर मीडिया में एक बडी बहस छिडी थी कि क्या ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा लांघने की कोशिश थी या नहीं, क्योंकि असीमित स्वतंत्रता आापसी सामंजस्य के लिये कतई सही नही है।

दरअसल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा वहां समाप्त हो जाती है जहां से किसी की भावनायें आाहत होने लगे। इसका एक और उदाहरण पिछले दिनों अकबरुदीन औवेसी के भाषणों में भी देखने को मिला। आंध्र प्रदेश विधानसभा में All India Majlis -e-Ittihad Muslimi पार्टी से सांसद औवेसी सांप्रदायिक भाषणों के लिये खासे चर्चा में रहते है। दिसंबर 2012 में अदिलाबाद में दिये उनके भाषण ने भी खूब बवाल खडा किया था जिसमें उन्होने कहा था भारत के 25 करोड मुसलमान यदि चाहे तो 100 करोड हिंदुओं को 15 मिनट में ही दिखा सकते हैं कि कौन ज्यादा ताकतवर है। इस तरह के वाक्य निश्चित रुप से लोगों में आपसी नफरत पैदा करते हैं। जिससे सामाजिक असंतुलन पैदा होना स्वाभाविक है।


 अपनी राय रखने की आजादी देना बिल्कुल गलत नहीं है। एक लोकतांत्रिक देश में ये एक सकारात्मक अधिकार है। लेकिन इसे सीमित करने की जरुरत है। जहां जनता का राज होता है वहां जनता के प्रत्येक वर्ग की संस्कृति, मान्यता, धार्मिकता और विश्वास संबंधी भावनाओं का सम्मान किया जाना चाहिये। स्वतंत्र अभिव्यक्ति को उस बिंदु पर सीमित कर दिया जाना चाहिये जहां सवाल राष्टीय एकता या फिर व्यक्तिगत भावनाओं का हो। 

क्योंकि अभिव्यक्ति की ऐसी स्वतंत्रता का कोई मोल नहीं जो किसी दूसरे की भावनाओं और विचारों का सम्मान न कर सके।

0 comments:

Post a Comment

Follow Updates

Total Pageviews

Powered by Blogger.

Confused

Confused
searching for a direction