Thursday 8 August 2013



                            एक बार फिर से हिमाचल युनिवर्सिटी में छात्र संघ चुनाव की घोषणा हो चुकी है और शिक्षा के रखवाले एक बार फिर से रैलियां और नारेबाजी कर अपनी मौजूदगी का एहसास कराने में जुट गए है। लेकिन पिछले एक साल में छात्र संगठनों के काम पर अगर नजर डाले तो ज्यादा कुछ निकल कर सामने नहीं दिखाई पड़ता। 

युनिवर्सिटी में बीते साल कई ऐसी घटनाऐं सामने आई जिसमें छात्र नेताओं की कमजोरियां साफ दिखी है। फिर चाहे वो बी एड प्रोस्पेक्टस की फीस बढ़ोत्तरी का मसला हो या फिर युनिवर्सिटी के कुछ विभागों में सीटों की संख्या में बढ़ोत्तरी का मुद्या, हॉस्टल की मैस का मुद्या हो या फिर बढ़ती फीस का। इसमें कोई एक संगठन नहीं बल्कि सभी संगठन नाकाम रहे है। 

युनिवर्सिटी के कुछ विभाग तो ऐसे है जहां छात्रों के बैठने तक की सही व्यवस्था नहीं है। पत्रकारिता विभाग ऐसी ही जरजरता का एक उदाहरण है जिसके लिये नई इमारत का निर्माण पिछले पांच साल से चल रहा है और अब तक चलता ही जा रहा है। और इसे देखकर लगता है कि आगे भी ये काम चलता ही रहेगा मगर पूरा कब होगा, इसका कोई भरोसा नहीं।

ये तो सिर्फ एक उदाहरण है। इसके अलावा और भी कई ऐसे मसले है जिन पर हर साल छात्र राजनीति होती है मगर चुनाव जाते ही इन समस्याओं पर से भी सबका ध्यान चला जाता है। हाल ही का रुसा पर मचा घमासान इसी का उदाहरण है जिस पर हर छात्र दल आए दिन शोर शराबा करता रहता है। कभी नारेबाजी होती है तो कभी धरने होते है मगर युनिवर्सिटी पर कोई असर नहीं पड़ा। आखिर रूसा लागू हो ही गया और छात्रों के साथ साथ अध्यापक भी अब इससे तालमेल बैठाने में माथापच्ची कर रहे है। 

दरअसल, अगर सभी छात्र संगठन सचमुछ में आम छात्र के लिये लड़ रहे है तो जरूरी है कि सभी एक साथ एक मंच पर आगे आऐं और एकजुट होकर अपनी आवाज उठायें मगर ऐसा होना फिलहाल मुश्किल हैं क्योंकि जाहिर है कि सभी छात्र संगठन किसी न किसी राजनीतिक दल से प्रेरित हैं और इनका साथ आना मुश्किल है। तो साफ है कि इस बार के चुनाव से भी युनिवर्सिटी में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं होने वाला, और इसमें कोई बुराई भी नहीं है क्योंकि यदि परिवर्तन आ जाये और सभी समस्याऐं हल हो जाऐं तो फिर छात्र नेताओं के पास चुनाव लड़ने के लिये मुद्या ही कहां रह जायेगा। और अगर मुद्या नहीं होगा तो फिर वो छात्र मतदाता से वोट कैसे मांगेंगे……..

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