Friday 26 April 2013




पिछले दिनो शर्मा जी एक भाषण प्रतियोगिता मे भाग लेने के लिए शिमला शहर गए। एक निजी पत्रिका के विमोचन के लिए समारोह का आयोजन किया जा रहा था जहां वक्ताओं को एक विषय पर अपने विचार प्रस्तुत करने थे। विषय था बोलने और लिखने की स्वतन्त्रता यानि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता। वही स्वतन्त्रता जिस का झण्डा दिखाकर आज इस देश के ज़्यादातर लोग यह समझते है कि उन्हे इसके तहत किसी भी व्यक्ति पर अपनी भड़ास निकालने का और सद्व्यवहार की सीमा लांघने का अधिकार मिल गया है।

खैर, अभिव्यक्ति के लिए आप किसी भाषा के अधीन नही होते। जिस माध्यम मे आप अपनी बात को दूसरों तक प्रभाव शाली तरीके से पहुंचा सके वही सशक्त माध्यम होता है। 

शर्मा जी को भी उस समारोह मे भाग लेने तक यही लगता था कि अभिव्यक्ति किसी भाषा की मोहताज नहीं होती। लेकिन समारोह मे भाग लेने के बाद वे जान गए कि कुछ परिस्थितियों मे अभिव्यति पर भी भाषा का स्वामित्व बन ही जाता है।

 http://rw-3.com/wp-content/uploads//hindi.jpg


                           शर्मा जी दरअसल हिन्दी के बड़े प्रेमी थे पर इसका मतलब ये बिलकुल नहीं है कि उन्हे अङ्ग्रेज़ी जैसी वैश्विक स्वामित्व वाली भाषा से नफरत थी। उन्हे अङ्ग्रेज़ी का भी गूढ़ ज्ञान था। शेक्सपेयर तक को समझने की कोशिश मे हाथ आजमा चुके थे हमारे शर्मा जी । लेकिन हिन्दी के प्रति उनका प्रेम कुछ ज्यादा ही था। वे लोग जिन्होने अपनी जीवन की शिक्षा ही “अ आ” से शुरू की थी, उन्हे मात्र दिखावे भर के लिए अङ्ग्रेज़ी मे बतियाते देखकर शर्मा जी गरम हो जाते थे। आम बोलचाल के लिए हिन्दुस्तानी अगर हिन्दी बोलने मे शरम महसूस करे तो शर्मा जी का लाल पीला होना तो तय होता था। बस फिर क्या, राह चलते किसी भी राहगीर पर हिन्दी का अपमान करने के लिए बरस पड़ते थे। लेकिन इससे भी बड़ा कांड तो उनके साथ अब होने वाला था।
 
समारोह मे भाग लेने के लिए शर्मा जी चले तो गए। हिन्दी भाषा के महासागर मे रात भर गोता लगाकर वो हिन्दी के ऐसे ऐसे मोती ढूंढ लाये थे कि मध्यम मानसिक स्तर वाले लोंगों के लिया तो उसे समझना उतना ही मुश्किल होने वाला था जितना मुश्किल आज के वख्त मे किसी लड़की को बहन जी कहना।

शर्मा जी बड़ी तैयारी के साथ कार्यक्रम मे हिस्सा लेने के लिए पहुंचे। चेहरे पद चौड़ी मुस्कान और ऊंची गर्दन करके मंच संचालक के पास पहुंचे और प्रतिभागियों मे शामिल होने के लिए अपने नाम का बखान किया। संचालक ने जब भाषा माध्यम पूछा तो शर्मा जी बड़े गर्व से मीठे भाव के साथ हिन्दी का उच्चारण ऐसे करने लगे जैसे हिन्दी भाषा गंगा हो और उनका मुख उसी गंगा की गंगोत्री। हिन्दी भाषा का उच्चारण करते हुये उन्हे उतनी ही खुशी मिल रही थी जितनी किसी लड़के को फेसबुक पर किसी लड़की की फ्रेंड रिक्वेस्ट मिलने पर होती है।

लेकिन शर्मा जी कि यह खुशी जल्द ही हवा हो गयी जब मंच संचालक ने कहा,Sorry sir, You have to represent your views in English only, otherwise you can’t participate.”
ये सुनकर शर्मा जी एकदम हक्के बक्के रह गए।

“हिन्दी का इतना बड़ा अपमान, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुयी”, शर्मा जी उस मंच संचालक पर ज़ोर से चिल्लाये। 

हिन्दी का इतना बड़ा अपमान वो आखिर कैसे बर्दाश्त कर लेते। विचारों की प्रस्तुति पर भाषा का प्रतिबंध, ये कहाँ का नियम है। गुस्से मे शर्मा जी संचालक को हिन्दी की पूरी रामलीला सुनाने की तैयारी मे थे लेकिन इससे पहले ही संचालक शर्मा जी को “sorry” शब्द की माला पहना कर चला गया। ऐसी परिस्थिति मे शर्मा जी की हालत का अंदाजा लगाना उतना ही मुश्किल है जितना एक लड़की से उसकी उम्र पूछने की जुर्रत करना।

खैर, शर्मा जी को अब समझ आ गया था कि जिस देश की संसद मे भी हिन्दी जैसी राष्ट्रभाषा का प्रयोग नाममात्र के लिए किया जाता हो उस देश मे ऐसे छोटे से कार्यक्रम मे हिन्दी को इतनी महत्वता कैसे दी जा सकती है।

दुनिया मॉडर्न बन रही है, देश आगे बढ़ रहा है, पहली कक्षा का बच्चा अ आ से पहले A B C सीख रहा है, लड़के जींस पहन कर खुद को माचोमैन समझ रहे है, लड़कियां बहन जी बोलने पर उसे अपना अपमान समझती है, युवाओं को परिवार से ज्यादा प्यार अच्छा लगने लगा है, युवतियो के लिए अंग प्रदर्शन Boldness का प्रतीक बन गया है, पर्दे का हीरो अब जीवन पर हावी हो रहा है, युवा लोग “जी” शब्द का इस्तेमाल कम और “yo yo” का इस्तेमाल ज्यादा कर रहे है, एक के बाद एक घटनाएँ हो रही है, पहले दिन कोई घटना होती है, दूसरे दिन हम कैन्डल मार्च निकालते है और तीसरे दिन फिर से घटना हो जाती है, कानून बन रहे है, लोग जाग रहे है, 8वी और 10वी के बच्चों को लैपटॉप बांटे जा रहे है, लोग अपने कुल देवता से ज्यादा भरोसा “GOOGLE” देवता पर कर रहे है.......

सच मे देश बदल रहा है, देश आगे बढ़ रहा है.....

अब ऐसे मे स्मार्ट फोन के जमाने मे लैंडलाइन फोन के समान शर्मा जी की हिन्दी का वर्चस्व आखिर कैसे बना रह सकता है। 


देर से ही सही, पर शर्मा जी को ये बात समझ आ ही गयी....

3 comments:

  1. Very well written.... Sorry for commenting in English though :P

    ReplyDelete
  2. एकदम सही कहा आपने न जाने कितने शर्मा जी रोज लज्जित होतें हैं इस देश में .वास्तविकता यह है हिंदी की सबसे जादा दुर्गति तो हम हिंदी वालो ने ही की है .बाल गंगाधर जो की एक मराठी थे ,गाँधी एक गुजराती ,सुभास चन्द्र बॉस एक बंगाली जैसे नेताओं ने सदा देश के सामने खुद को हिंदी में ही प्रस्तुत किया .गाँधी जी तो कहते थे टूटी फूटी हिंदी बोलना मुझे अंग्रेजी बोलने से जादा पसंद है क्यूंकि अपने देश में अंग्रेजी बोलना मानो मुझे पाप करना लगता है .किन्तु वो नेहरी था एक हिंदी वाला जिसने आज़ादी के बाद अपने पहेला भाषण हिंदी में न देकर अंग्रेजी में दिया और यह तय कर दिया कि अंग्रेजी आना वाले समय में भी भारत पर राज करती रहेगी .

    ReplyDelete
  3. ab zimmedar to chahe jo bhi ho par nuksaan to hindi bhasha ka hi ho raha he na....

    and varsha g thnx
    vaise its a real incident...
    aur isme sharma g ka pura naam he...dharam prakash sharma

    ReplyDelete

Follow Updates

Total Pageviews

Powered by Blogger.

Confused

Confused
searching for a direction