भरे बाज़ार के बीच में...ऑटोरिक्शा और दुपहिया वाहनों की बेशुमार आवाजाही... कानों के परदे फाड़ देने वाला शोर.... और ठीक सामने... आसमान को छूती चार बुलंद मीनारें... ये नज़ारा था उस जगह का...जिसे चारमीनार कहा जाता है... हैदराबाद शहर के बीचोंबीच बनी एक ऐसी इमारत... जिसे कभी मस्जिद के तौर पर बनाया गया था... लेकिन इस मस्जिद में कभी नमाज़ नहीं पढ़ी जा सकी.... क्यों... इसका जवाब नहीं है मेरे पास.... लोगों ने कहा.... हैदराबाद गए हो तो चारमीनार देख के आना.... मैं गया... लेकिन जो देखा... उसे रुह में उतार पाने की काबिलियत नहीं थी मुझमें.... इतने में धूप से आंखों को बचाने वाले काले नीले रंगों के पंद्रह बीस चश्में पकड़े हुए.... वो लड़का मेरे पास आया... धूप की गर्मी उसके चेहरे का रंग बदल चुकी थी... और वो... मेरी आंखों की फिकर कर मुझे चश्मा खरीदने की वजह बता रहा था.... मैंने एक नजर उसे देखा... और एक नजर उन बुलंद मीनारों को... जिनमें पंछी अपना ठिकाना बना चुके थे... और जिन पर अब घास उग आई थी...
कैसा महसूस हो रहा होगा....मोहम्मद कुली कुतुब शाह को....अपनी बनाई कलाकृति की ये हालत देखकर....जिस इमारत को उसने कभी अपने खुदा का शुक्रिया करने के लिए खुदा की याद में बनाया था...आज वो इमारत हुकूमत से अपनी सलामती की दुआ मांग रही थी...लेकिन बदकिस्मती ये...कि उसकी इस दुआ को सुनने वाला आज कोई नहीं है....काश कोई दूसरा कुतुब शाह पैदा हो जाए जो चारमीनार की मीनारों को बुलंद बनाए रखने की पहल करे....काश हुकूमत को ये बात समझ आए...कि कुछ बातों का मतलब...सियासत से भी ज्यादा गहरा होता...काश इस इमारत की तकदीर बदलने वाला कोई आए....काश चारमीनार को...हम खूबसूरत चारमीनार कहने की हिम्मत जुटा पाएं...काश....
Good One
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