Wednesday 27 April 2016



अधजल गगरी छलकत जाए...मगर जिस जल से ये गगरी छलकेगी...वो जल आज गायब है....पेयजल के अस्तित्व की अनुपस्थिति उस विरोधाभास की वास्तविकता को हमारे सामने प्रस्तुत करती है जिसकी एक तस्वीर मराठवाड़ा में दिखती है, दूसरी तस्वीर लातूर में दिखती है...कुछ और तस्वीरें राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश में दिखती है...तो एक धुंधली सी तस्वीर पहाड़ों की राजधानी शिमला में भी नजर आती है...बुलेट की रफ्तार पर प्रकृति की ये ऐसी ब्रेक है जो बिना स्पीड ब्रेकर के ही इस बार ऐसी लगी है कि पूरा देश उछाल मार रहा है...और पूरा देश मतलब, दिल्ली समेत...
वैसे ये सियासी विरासत होती ही ऐसी है...जो जबतक उछाल न मारे, तबतक सियासी रहनुमाओं की नींद ही नहीं खुलती है...लेकिन जब नींद खुलती है तो हाथ मुंह धोने के लिए एक गिलास पानी तक नहीं मिल पाता...आधुनिक राजनीति की सियासी पिक्चर कुछ और है जनाब...यहां मंत्री जी के हैलीकॉप्टर को उतरने के लिए बनाया जाने वाला आधार हजारों लीटर पानी पी जाता है...औऱ वो पानी कहीं भू-मग्न होकर अगर नजर आने भी लगे तो एक और मंत्री जी उसके साथ सेल्फी खिंचाती नजर आ जाती है...वैसे ये उस सौभाग्य का दुर्भाग्य है जो सैंतालीस के दौर में भारत को अंग्रेजी से आजाद कराने वाले दिग्गजों ने देखा था...अंग्रेजी इसलिये कहूंगा क्योंकि उस दौर में जितने हावी अंग्रेज थे उतनी ही हावी आज अंग्रेजी है...खैर, प्यास तो प्यास है...क्या हो गया अगर कोई 11 साल की बच्ची अपने परिवार के लिए पानी का इंतजाम करते करते खुद पानी पानी हो गई...और आखिर में अस्थियां बन कर पानी में ही जा मिली...गंगा के पानी में....
प्यास बढ़ रही है...पानी चाहिए...फ्रिज खोला...एक गिलास पानी पिया...और लंबी सांस ली...लेकिन योगिता सांस नहीं ले पाई...औऱ उस जैसे कई बच्चे जो पानी की बूंद को अमृत रस समझकर उसे संजोने में लगे है...सूखाग्रस्त इलाकों के वो सैंकड़ों, हजारों, लाखों लोग जिनके लिए सांस से ज्यादा अहम पानी हो गया है...उन लोगों के लिए समृद्ध भारत का निर्माण करने आदरणीय प्रधानमंत्री जी एक बार फिर अमेरिका जा रहे हैं....अमेरिकी सांसदों ने मोदी के भाषण सुनने की इच्छा जो जताई है...लेकिन योगिता की इच्छा सिर्फ पानी की कुछ बूंदें इकट्ठा करने की थी...जो वो नहीं कर पाई....योगिता अब हमारे बीच नहीं है....दो बूंदें जिंदगी की...पोलियो की वो बूंदें जो जिंदगी देती थी...और यहां भी दो बूंदें जिंदगी की...पानी की वो बूंदें जिन्होंने एक नन्ही जान से उसकी सांसें छीन ली....योगिता...अब हमारे बीच नहीं है...और पानी की हर घूंट के साथ योगिता की याद हमें ये सोचने पर मजबूर करेगी कि बुलेट की रफ्तार से बढ़ता भारत पानी की बूंदें लाना कैसे भूल गया ....रफ्तार की इस दौड़ में पानी की बूंद पीछे कैसे छूट गई...जवाब तो नहीं है....औऱ शायद कोई जवाब ढूंढ भी नहीं रहा...लेकिन सच्चाई यही है...योगिता...अब हमारे बीच नहीं है...

1 comment:

  1. सराहनीय लेखन...उम्दा। सोच की अंतहीन सीमाओं पर धर्म का प्रकाश जगमगाता रहे।

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